Premanand Ji Maharaj: यदि परिवार में छल-कपट हो तो उसका सामना कैसे करें ? जानें प्रेमानंद महाराज जी ने क्या कहते हैं

Premanand Ji Maharaj: जब परिवार का कोई व्यक्ति छल-कपट करता है, तो वह पीड़ा और मानसिक संताप का कारण बनता है। परिवार वह स्थान होता है जहां प्रेम, विश्वास और सहयोग की अपेक्षा की जाती है। ऐसे में जब अपनों से ही धोखा मिले, तो व्यक्ति अंदर से टूट जाता है। इस विषय में संत प्रेमानंद महाराज के अनमोल वचन और उनका दृष्टिकोण अत्यंत मार्गदर्शक है।
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं: दुनिया में सबसे बड़ा दुःख अपनों से मिला धोखा होता है, लेकिन वही सबसे बड़ा गुरु भी बनता है। इसका अर्थ है कि जब कोई अपना व्यक्ति छल करता है, तो वह घटना हमें जीवन का बड़ा सबक सिखाती है। यह अनुभव हमें सतर्क बनाता है, आत्मनिर्भर बनाता है और ईश्वर के प्रति हमारी आस्था को मजबूत करता है।
प्रेमानंद महाराज का मानना है कि यदि कोई अपना धोखा दे, तो सबसे पहले शांति बनाए रखना ज़रूरी है। तुरंत प्रतिक्रिया देने की बजाय, मौन रहकर स्थिति को समझना चाहिए। क्रोध में कोई भी निर्णय अक्सर गलत होता है।
वे कहते हैं- मौन रहना सबसे बड़ी साधना है, जो बात शब्द न सुलझा सकें, वह मौन सुलझा देता है।
धोखा देने वाले व्यक्ति के प्रति द्वेष या प्रतिशोध की भावना नहीं रखनी चाहिए। प्रेमानंद जी सिखाते हैं कि क्षमा और संयम ही सच्चे धार्मिक व्यक्ति की पहचान है। जो व्यक्ति अपमान को भी प्रसाद समझकर ग्रहण कर ले, वह सच्चा भक्त होता है। उनका दृष्टिकोण है कि संसार में प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों का फल भोगता है। जो छल करता है, उसे उसका फल अवश्य मिलेगा, चाहे तुरंत न सही, पर समय के साथ। इसलिए ईश्वर पर भरोसा बनाए रखना चाहिए।
जो जैसा करता है, उसे वैसा ही लौटता है, यह प्रकृति का अटल नियम है।
अंततः प्रेमानंद महाराज हमें यह भी बताते हैं कि जीवन में दुख देने वाले व्यक्ति भी आध्यात्मिक उन्नति का साधन बनते हैं। कष्ट देने वाला व्यक्ति आपका वैराग्य बढ़ाता है और वैराग्य ही आपको भगवान की ओर ले जाता है।
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