अम्बेडकर नगर : भ्रष्टाचार के खुलासे का अध्याय 1 : ग्राम पंचायत तिलकटंडा में 12 लाख की लूट, हैंडपंप 'खराब' तो गांव 'बर्बाद'
आलापुर ,अंबेडकरनगर। उत्तर प्रदेश सरकार 'भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश' का दावा तो ठोक रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। विकास खंड जहांगीरगंज की ग्राम पंचायत तिलकटंडा में एक ऐसा भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है, जो डबल इंजन सरकार के 'विकास के घोड़े' को पंगु बना देगा। यहां ग्राम प्रधान और सचिव ने सरकारी खजाने को 'अपना जेब' बना लिया—12 लाख रुपये से ज्यादा की रकम हैंडपंप मरम्मत और चूना-ब्लीचिंग छिड़काव के नाम पर उड़ा दी, लेकिन गांव आज भी गंदगी और बदहाली की गिरफ्त में सिसक रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि ये 'विकास के सौदागर' बिना एक ईंट भी जोड़े, पूरा फंड 'हवाई मोड' पर उड़ा चुके हैं। क्या ये है 'अमृत भारत' का असली चेहरा?
नालियां 'बजबजा' रही, गांव बना कूड़ा 'राजा'
तिलकटंडा गांव, जहां कभी उम्मीदों की किरणें चमकती थीं, आज आदिमानव के दौर जैसा लगता है। गांव की नालियां गंदगी से लबालब, सड़कों पर कूड़ा-कचरा का पहाड़, और लाखों रुपये खर्च कर बनाए गए आरआरसी केंद्र (कूड़ा निस्तारण घर) अब झाड़ियों और कीचड़ में दबे पड़े हैं। स्वच्छ भारत अभियान का सपना यहां सपना ही रह गया—गांव की गलियां चूने-ब्लीचिंग से महरूम, और हवा में बदबू का राज। ग्रामीणों का कहना है, "प्रधान-सचिव जी ने तो 'पेपर पर परफेक्ट' गांव बना दिया, लेकिन असल में हम तो 'गंदगी के जंगल' में जी रहे हैं।"गांव में करीब 20 इंडिया मार्का हैंडपंप हैं, जिनमें से 6 तो सालों से सूखे पड़े हैं—पानी की एक बूंद नहीं। बावजूद इसके, इन 'विकास के रखवालों' ने 41 हैंडपंपों की मरम्मत के नाम पर 10 लाख रुपये का बिल काट लिया! ग्रामीण आशिक अली, वसीम, बबलू, रामअधार, इंद्रावती, रामबुझारत और खुसरू जैसे कई लोग चीख-चीखकर बता रहे हैं, "न मरम्मत हुई, न नल चले। ये पैसे तो सीधे जेब में!" ऊपर से, चूना-ब्लीचिंग छिड़काव के नाम पर पिछले 8 महीनों में 1.17 लाख रुपये निकाल लिए गए, जबकि गांव की चकरोडों पर कभी छिड़काव की सुगबुगाहट भी नहीं। चार सालों में इसी मद में लाखों का 'वारा-न्यारा' हो चुका—कागजों पर 'स्वच्छ', जमींन पर 'गंदा'!
मिलीभगत का जाल: ऑनलाइन पोर्टल पर 'खेल', ग्रामीणों को 'अंधेरे' में!
सबसे शर्मनाक तो ये कि ये सारा खेल 'पंचायत साइड' ऐप पर अपलोड हो चुका है। ग्रामीण जब कार्यों की लिस्ट देखते हैं, तो आंखें फटी की फटी रह जाती हैं—फर्जी बिल, हवाई प्रोजेक्ट्स! लेकिन प्रधान-सचिव की जोड़ी इतनी 'बेशर्म' है कि बिना काम के पूरा खजाना खाली। सूत्र बताते हैं, ये मिलीभगत का 'परफेक्ट क्राइम' है—फंड आता है, पैसे उड़ते हैं, और गांव वीरान। ग्रामीणों ने कहा, "ये निट्ठल्ले कामचोर हैं, जो सरकार के पैसे को अपना 'जेब' समझते हैं।"जब इसकी शिकायत खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) सतीश कुमार सिंह से की गई, तो उनका जवाब था: "शिकायत दीजिए, जांच होगी।" लेकिन ग्रामीण चिल्ला रहे हैं, "जांच तो ऑनलाइन पोर्टल पर ही हो सकती है—सारी वित्तीय डिटेल्स वहां हैं! ये उच्च स्तरीय जांच का केस है, वरना भ्रष्टाचार का 'बंदरबांट' जारी रहेगा।"
ग्रामीणों की पुकार : 'विकास' का घोड़ा कागजों पर, हकीकत में 'भ्रष्टाचार का बाजार'
तिलकटंडा के निवासी अब सड़कों पर उतरने को तैयार हैं। आशिक अली ने कहा, "सरकारी योजनाएं कागजों पर दौड़ रही हैं, लेकिन हमारा गांव बद से बदतर हो गया।" वसीम ने जोड़ा, "डबल इंजन सरकार ताल ठोक रही है, लेकिन यहां इंजन ही 'खराब' हो चुका—भ्रष्टाचार के पुर्जों से!" पत्रकार टीम ने गांव का जायजा लिया—कैमरा ने कैद कीं वो तस्वीरें, जो सरकार के दावों को झूठा साबित करती हैं: सूखे हैंडपंप, गंदी नालियां, और बर्बाद आरआरसी सेंटर।ये सिर्फ तिलकटंडा की कहानी नहीं—पूरे उत्तर प्रदेश में ग्रामीण पंचायतों में ऐसा 'लूटतंत्र' चल रहा है। सरकार अगर सचमुच 'भ्रष्टाचार मुक्त' बनना चाहती है, तो ऐसे मामलों पर तुरंत एक्शन लेना होगा।
ग्रामीणों की मांग है: प्रधान-सचिव पर FIR, फंड की रिकवरी, और स्वतंत्र जांच।
कहीं ये 'विकास का सपना' तो भ्रष्टाचार के अंधेरे में न खो जाए...
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